छठ पर्व पर श्रद्धालुओं ने सूर्य देव को अर्ध्य देकर करोना महामारी से निजात दिलाने की कामना की
जगदलपुर चार दिनों तक चलने वाले आस्था के महापर्व छठ के तीसरे दिन आज शाम डूबते भगवान सूर्य को छठ पूजा का पहला अर्घ्य दिया जायेगा , इसे संध्या अर्घ्यं भी कहते हैं। उगते सूर्य को अर्घ्य देने की रीति तो कई व्रतों और त्योहारों में है लेकिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा केवल छठ में ही है। सूर्यदेव को अर्घ्य देने के लिये सभी लोग परिवार सहित एक साथ निकलेंगे। अर्घ्य देने से पहले बांँस की टोकरी को फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू और पूजा के सामान से सजाया जाता है , जिसे व्रती महिलायें अपने सिर पर धारण कर निकलेंगी। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा होती है फिर डूबते हुये सूर्यदेव को अर्घ्य देकर पांँच बार परिक्रमा की जाती है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिये छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है। कहा जाता है कि इससे व्रत रखने वाली महिलाओं को दोहरा लाभ मिलता है। जो लोग डूबते सूर्य की उपासना करते हैं, उन्हें उगते सूर्य की भी उपासना जरूर करनी चाहिये। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है , इसके अलावा इससे सेहत से जुड़ी भी कई समस्यायें दूर होती हैं। वहीं मिथिला समाज के लोगों ने करोना संकट से निजात मिलने की कामना की
लोक आस्था का चार दिवसीय छठ महापर्व बुधवार से नहाय खाय के साथ शुरू हुआ। दूसरे दिन गुरुवार शाम को छठ व्रतियों ने खरना का प्रसाद ग्रहण किया। इसके साथ ही छठ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास भी शुरू हो गया है। आज शाम को डूबते सूर्य को छठ व्रती अर्घ्य देंगी जिसके लिये सभी तैयारियाँ पूरी की जा चुकी हैं। आज शाम को ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया गया और कल सुबह उगते सूर्यदेव को पूजापाठ कर अर्घ्य दिया जायेगा। फिर प्रसाद वितरण के साथ ही छठ महापर्व व्रत का समापन होगा।